FY2025 में भारत के निर्यात में एक तेज़ी देखने को मिली है, लेकिन सबसे बड़ा झटका अमेरिकी बाज़ार ने दिया। भारत का निर्यात अमेरिका में करीब सात गुना तेज़ी से बढ़ा—जबकि समग्र निर्यात उस गति से पीछे रहा। विशेष विशेषज्ञ कहते हैं कि यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से अमेरिकी टैरिफ़ की अनिश्चितता के चलते हुई थी—जिसने भारतीय निर्यातकों को पहले ही समय में माल भेजने (frontloading) पर मजबूर कर दिया।
फ्रंटलोडिंग की रणनीति: क्यों उत्तरदायी थी?
अमेरिकी राष्ट्रपति की टैरिफ़ आख़िर-औ-आख़िर "चढ़-उतार" वाले रहे—कुछ वस्तुओं पर टैरिफ़ बढ़ते थे, फिर घटते थे। अप्रैल में जब reciprocal duties (बहुत बड़े जुर्माने के भाव) लागू किए गए, तो भारतीय निर्यातकों ने शिपमेंट पहले से कर दिए ताकि महंगे शुल्क लागू होने से पहले माल अमेरिका पहुँच जाए।
इस रणनीति ने उनके निर्यात आंकड़ों को असाधारण रूप से बढ़ा दिया—विशेष रूप से उन्हें फायदा हुआ जो अमेरिकी बाज़ार की ओर जा रहे थे।
आंकड़ों ने क्या बताया?
-
भारतीय निर्यात कुल मिलाकर बढ़ा, लेकिन अमेरिका की ओर निर्यात उसके मुकाबले सात गुना तेज़ी से बढ़ा।
-
भारतीय एक्सपोर्ट्स जुलाई में अकेले अमेरिकी बाज़ार में लगभग 20% तक उछल गए—एक स्पष्ट संकेत कि अमेरिकी मांग में स्थिरता और डिलीवरी आधारित रणनीति कामयाब रही।
-
यह तेजी इस बात का ठोस प्रमाण है कि हाल की व्यापार नीतियों ने ड्राफ्ट प्रभाव जारी किया और बाज़ार को अस्थायी रूप से बदलने की क्षमता रखती हैं।
इसका क्या मतलब है?
-
निर्यातकों की चपलता: इसने बताया कि भारतीय निर्यातक मार्केट सेंटीमेंट और अमेरिकी नीतियों से कैसे त्वरित प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
-
खतरे का संकेत: ऐसी तेज़ी सतत नहीं हो सकती—टैरिफ़ की अनिश्चितता बनी रहेगी, जिससे आगे संभावित गिरावट संभव है।
-
विभाजन की चुनौतियाँ: स्वदेशी उत्पादन और विविधीकरण पर जोर देने का संदेश—कहीं एक बाज़ार पर निर्भरता संकट न बना दे।
भविष्य में सुधार के अवसर
-
बिलैटरल ट्रेड समझौते—जो भारत और अमेरिका दोनों के निर्यातकों को सुरक्षात्मक और टिकाऊ लाभ दें।
-
निर्यात उत्पाद विविधता—फार्मा, टेक्सटाइल, ऑटो, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में विस्तार।
-
लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन सुधार—जो अचानक नीतिगत बदलावों के दौरान ऑर्डर डिलीवरी में लचीलापन देता है।
निष्कर्ष
FY2025 में अमेरिका में निर्यात का इस स्तर पर बढ़ना यह दिखाता है कि बाजार की नीतिगत अनिश्चितता कितनी गहराई से व्यापार निर्णयों को प्रभावित कर सकती है। पर यह एक सीमित लाभ भी था—जो केवल पहले कदम (frontloading) का नतीजा था।
आगे की राह में निर्यातकों और सरकार के बीच सहयोग, व्यापारिक समझौते, और निर्यात रणनीतियों का पुनरावलोकन—ये सभी सुनिश्चित करेंगे कि यह बढ़त केवल स्थगित न हो, बल्कि लंबी अवधि तक कायम रहे।