मंगलवार को करें श्री हनुमान चालीसा का पाठ, दूर होंगी जीवन की सभी कठिनाइय आपकी कुंडली के दोषों को काटने का सबसे आसान और प्रभावी तरीका।

हनुमान चालीसा हिंदू धर्म में सबसे अधिक पूजनीय भजनों में से एक है। प्रत्येक मंगलवार को इसका पाठ करने से भगवान हनुमान की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जो आपको बल, बुद्धि देते हैं और जीवन की सभी कठिनाइयों और संकटों से दूर रखते हैं।

hanuman chalisa complete hindi text


॥ सही पाठ विधि ॥

पाठ को सही ढंग से करने के लिए इन सरल नियमों का पालन करें:

  • शुद्धता: पाठ शुरू करने से पहले स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
  • आसन: लाल रंग के आसन (चटाई) पर बैठें।
  • दिशा: हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करें।
  • संकल्प: पाठ शुरू करने से पहले अपने मन में अपनी इच्छा या समस्या को दोहराते हुए संकल्प लें।
  • तिल का तेल: हनुमान जी को चमेली का तेल या तिल का तेल और सिंदूर अर्पित करें। पाठ के दौरान दीपक जलाएं।
  • माला: यदि संभव हो, तो रुद्राक्ष की माला से राम नाम का जाप करें, फिर चालीसा का पाठ करें।
  • पाठ संख्या: अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए इसे 7, 11, 21, या 108 बार पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है।

॥ दोहा ॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥

संकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन॥

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥

लाय सजीवन लखन जियाए।
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सकैं कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥

आप तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

॥ अंतिम दोहा ॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

Post a Comment

Previous Post Next Post